टूट जाएँ अगर ये खिलौने अभी

  - Sristi Singh

टूट जाएँ अगर ये खिलौने अभी
रो पड़ेंगे ज़मीं के फ़रिश्ते अभी

देखते हो तो क्या देखते हो भला
थक गए राह घर ये दरीचे अभी

लाख ग़म को सँभालू सँभलते नहीं
दस्तरस में नहीं हैं उजाले अभी

  - Sristi Singh

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