0

ख़ुद से हूं हैरतजदा मैं जाने क्या चलने लगा - Tariq Faiz

ख़ुद से हूं हैरतजदा मैं जाने क्या चलने लगा
मेरे अंदर जैसे कोई मौजेज़ा चलने लगा

कार की खिड़की से बाहर मैंने देखा तो लगा
आसमां ठहरा हुआ है रास्ता चलने लगा

राह में थोड़ी थकन सी मुझको जब लगने लगी
मेरे आगे आगे मेरा हौसला चलने लगा

तेरी मेरी ये कहानी भूली बिसरी दास्तां
जैसे कोई एक पल आया रुका चलने लगा

- Tariq Faiz

Kahani Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Tariq Faiz

As you were reading Shayari by Tariq Faiz

Similar Writers

our suggestion based on Tariq Faiz

Similar Moods

As you were reading Kahani Shayari