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लब पे आता था जो दुआ बन कर - Haider Khan

लब पे आता था जो दुआ बन कर
दिल में रहता है अब ख़ला बन कर

जब सँवरते हैं वो तो हम उनको
देख लेते हैं आइना बन कर

सोच लो, मैं उलझ भी सकता हूँ
एक पेचीदा फ़लसफ़ा बन कर

ज़ख़्म बन कर तो सब मिले लेकिन
तुम मिले ज़ख़्म-ए-ला-दवा बन कर

कितना इतरा रहा है अब वो फूल
तेरे बालों का मोगरा बन कर

जो मिरे मस'अलों का हल था कभी
ख़ुद खड़ा है वो मस'अला बन कर

वो बिछड़ कर भी साथ है मेरे
एक यादों का सिलसिला बन कर

एक रिश्ता बनाना था उसको
सो बनाया है बे-वफ़ा बन कर

- Haider Khan

Lab Shayari

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