लब पे आता था जो दुआ बन कर
दिल में रहता है अब ख़ला बन कर
जब सँवरते हैं वो तो हम उनको
देख लेते हैं आइना बन कर
सोच लो, मैं उलझ भी सकता हूँ
एक पेचीदा फ़लसफ़ा बन कर
ज़ख़्म बन कर तो सब मिले लेकिन
तुम मिले ज़ख़्म-ए-ला-दवा बन कर
कितना इतरा रहा है अब वो फूल
तेरे बालों का मोगरा बन कर
जो मिरे मस'अलों का हल था कभी
ख़ुद खड़ा है वो मस'अला बन कर
वो बिछड़ कर भी साथ है मेरे
एक यादों का सिलसिला बन कर
एक रिश्ता बनाना था उसको
सो बनाया है बे-वफ़ा बन कर
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