और क्या हमसे ज़माना चाहता है
तोड़कर दिल को हँसाना चाहता है
जा बसा घर छोड़कर परदेस में जो
ऐसा भी वो क्या कमाना चाहता है
जो बना फिरता था शैदाई मिरा इक
क्यों वही दिल को दुखाना चाहता है
ये रदीफ़-ओ-क़ाफ़िए का खेल है बस
हर ग़ज़लगो ये बताना चाहता है
दर्द होता है जिसे अब याद करके
दिल मिरा वो सब भुलाना चाहता है
ज़िन्दगी सलमा बड़ी है ख़ूब लेकिन
हाथ वो इससे छुड़ाना चाहता है
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