कहीं पर कोई है जो ख़ुद की परछाई से डरता है
कोई महफ़िल तो कोई है जो तन्हाई से डरता है
यहाँ हर शख़्स कहता है ये दुनिया ख़ूबसूरत है
मेरे अंदर जो लड़का है वो रानाई से डरता है
वही इक रोज़ इक लड़की की बिछड़न देख ली जबसे
उसी दिन से ये मेरा दिल भी शहनाई से डरता है
As you were reading Shayari by Purushottam Tripathi
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