एक लड़की मुझको ज़ख़्मी लग रही है
उसके हाथों में जो मेहँदी लग रही है
इक मुझे ही देखने के वास्ते अब
उसके घर में एक खिड़की लग रही है
मैं जो सहमा-सहमा बैठा हूँ यहाँ पर
ये मोहब्बत अब बला सी लग रही है
चोट दिल पर मैंने खाई है ज़ियादा
और बदन पर मेरे हल्दी लग रही है
उसने मेरा साथ छोड़ा क्यों बताओ
मुझको इसमें रब की मर्ज़ी लग रही है
रब ने किस अंदाज़ से उसको बनाया
मुझको वो बोतल तो रम की लग रही है
देखी थी जितनी जवानी में दिल-ए-जाँ
ख़ूबसूरत अब भी उतनी लग रही है
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