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मेरी नजर के सलीके में क्या नहीं आता - Waseem Barelvi

मेरी नजर के सलीके में क्या नहीं आता
बस इक तेरी तरफ ही देखना नहीं आता

अकेले चलना तो मेरा नसीब था कि मुझे
किसी के साथ सफर बांटना नहीं आता

उधर तो जाते हैं रस्ते तमाम होने को
इधर से हो के कोई रास्ता नहीं आता

जगाना आता है उसको तमाम तरीकों से
घरों पे दस्तकें देने ख़ुदा नहीं आता

यहां पे तुम ही नहीं आस पास और भी हैं
पर उस तरह से तुम्हें सोचना नहीं आता

पड़े रहो यूं ही सहमे हुए दियों की तरह
अगर हवाओं के पर बांधना नहीं आता

- Waseem Barelvi

Hawa Shayari

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