दुनिया को बताने के लिए कुछ भी नहीं है
अब सुनने सुनाने के लिए कुछ भी नहीं है
तस्वीर कोई तेरी, ना ही कोई निशानी
अब तुझको भुलाने के लिए कुछ भी नहीं है
हर एक क़दम पे तो पलट कर यूंँ न देखो
अब साथ निभाने के लिए कुछ भी नहीं हैं
जब ख़त्म हुआ क़िस्सा तो तुम पास हो आए
अब और सुनाने के लिए कुछ भी नहीं है
जब दिल ही नहीं रूह तलक ज़ख़्म भरा हो
फिर हंँसने हंँसाने के लिए कुछ भी नहीं है
इक ऐसे सफ़र पे तो निकल आए हैं खालिद
अब लौट के जाने के लिए कुछ भी नहीं है
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