Andaleeb Shadani

Andaleeb Shadani

@andaleeb-shadani

Andaleeb Shadani shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Andaleeb Shadani's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
देर लगी आने में तुम को शुक्र है फिर भी आए तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो

शफ़क़ धनक महताब घटाएँ तारे नग़्मे बिजली फूल
इस दामन में क्या क्या कुछ है दामन हाथ में आए तो

चाहत के बदले में हम तो बेच दें अपनी मर्ज़ी तक
कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो

क्यूँ ये मेहर-अंगेज़ तबस्सुम मद्द-ए-नज़र जब कुछ भी नहीं
हाए कोई अंजान अगर इस धोके में आ जाए तो

सुनी-सुनाई बात नहीं ये अपने उपर बीती है
फूल निकलते हैं शो'लों से चाहत आग लगाए तो

झूट है सब तारीख़ हमेशा अपने को दोहराती है
अच्छा मेरा ख़्वाब-ए-जवानी थोड़ा सा दोहराए तो

नादानी और मजबूरी में यारो कुछ तो फ़र्क़ करो
इक बे-बस इंसान करे क्या टूट के दिल आ जाए तो
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Andaleeb Shadani
हँसती आँखें हँसता चेहरा इक मजबूर बहाना है
चाँद में सच-मुच नूर कहाँ है चाँद तो इक वीराना है

नाज़ परस्तिश बन जाएगा सब्र ज़रा ऐ शोरिश-ए-दिल
उल्फ़त की दीवाना-गरी से हुस्न अभी बेगाना है

मुझ को तन्हा छोड़ने वाले तू न कहीं तन्हा रह जाए
जिस पर तुझ को नाज़ है उतना उस का नाम ज़माना है

तुम से मुझ को शिकवा क्यूँ हो आख़िर बासी फूलों को
कौन गले का हार बनाए कौन ऐसा दीवाना है

एक नज़र में दुनिया भर से एक नज़र में कुछ भी नहीं
चाहत में अंदाज़ नज़र ही चाहत का पैमाना है

ख़ुद तुम ने आग़ाज़ किया था जिस का एक तबस्सुम से
महरूमी के आँसू बन कर ख़त्म पे वो अफ़्साना है

यूँ है उस की बज़्म-ए-तरब में इक दिल ग़म-दीदा जैसे
चारों जानिब रंग-महल हैं बीच में इक वीराना है
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Andaleeb Shadani
जहाँ अहद-ए-तमन्ना ख़त्म हो जाए
अज़ाब-ए-जावेदानी ज़िंदगी है

रुलाती है मुझे क्यूँ चाँदनी रात
यही इक राज़ मेरी ज़िंदगी है

ख़लिश हो दर्द हो काहिश हो कुछ हो
फ़क़त जीना भी कोई ज़िंदगी है

हलाक-अंजाम तकमील-ए-तमन्ना
बका-ए-आरज़ू ही ज़िंदगी है

जिगर में टीस लब हँसने पे मजबूर
कुछ ऐसी ही हमारी ज़िंदगी है

वो चाहे जिस क़दर भी मुख़्तसर हो
मोहब्बत की जवानी ज़िंदगी है

उमीदें मर चुकीं मैं जी रहा हूँ
अजब बे-इख़्तियारी ज़िंदगी है

जवानी और हंगामों से ख़ाली
ये जीना है ये कोई ज़िंदगी है

गुज़ारी थीं ख़ुशी की चंद घड़ियाँ
उन्हीं की याद मेरी ज़िंदगी है

मोहब्बत दोनों जानिब से मोहब्बत
न पूछो आह कैसी ज़िंदगी है
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Andaleeb Shadani
सहन-ए-चमन है गोशा-ए-ज़िंदाँ तिरे बग़ैर
मा'मूरा-ए-हयात है वीराँ तिरे बग़ैर

छुप छुप के जिस को देखने आता था माहताब
ज़ुल्मत-कदा है अब वो शबिस्ताँ तिरे बग़ैर

जलता है चारासाज़ की नादानियों पे जी
मैं और मेरे दर्द का दरमाँ तिरे बग़ैर

सोती हैं इस में कितनी उमीदें फ़ना की नींद
सीना है एक शहर-ए-ख़मोशाँ तिरे बग़ैर

मेरी हँसी कि थी तिरा सरमाया-ए-नशात
आ देख अब है ख़ंदा-ए-गिर्यां तिरे बग़ैर

महताब के हुजूम में गुम हो गई थी रात
फिर क़हर बन गया ग़म-ए-दौराँ तिरे बग़ैर

जलता है तेज़ तेज़ तड़पता है पै-ब-पै
दिल है कि एक शोला-ए-लरज़ाँ तिरे बग़ैर

मैं हेच हूँ मगर मुझे इतना सुबुक न कर
मैं और नशात-ए-ज़ीस्त का अरमाँ तिरे बग़ैर

जिस ज़िंदगी को तू ने बनाया था ज़िंदगी
वो ज़िंदगी है ख़्वाब-ए-परेशाँ तिरे बग़ैर
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Andaleeb Shadani