Ehsan Darbhangavi

Ehsan Darbhangavi

@ehsan-darbhangavi

Ehsan Darbhangavi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ehsan Darbhangavi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

11

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
ख़याल-ओ-ख़्वाब की बातों को दोहराने से क्या होगा
हक़ीक़त सामने है जब तो अफ़्साने से क्या होगा

ख़िरद से जो नहीं मुमकिन जुनूँ वो कर दिखाता है
ग़लत है जो ये कहते हैं कि दीवाने से क्या होगा

अगर दरिया में रहना है बहाना सीख मौजों से
ख़स-ओ-ख़ाशाक की मानिंद बह जाने से क्या होगा

इसी एहसास से पैदा हुई है फ़िक्र-ए-आजादी
क़फ़स में इस तरह घुट घुट के मर जाने से क्या होगा

शिकस्ता-साज़ से नग़्मे कभी पैदा नहीं होते
तुम्हारी उँगलियों के शौक़ फ़रमाने से क्या होगा

दिए आँखों के दोनों बुझ गए जब रात भर जल कर
तो हंगाम-ए-सहर यूँ बे-हिजाब आने से क्या होगा

अता करना है 'एहसाँ' बज़्म को सोज़-ए-जिगर अपना
ब-रंग-ए-शम्अ यूँ ख़ामोश जल जाने से क्या होगा
Read Full
Ehsan Darbhangavi
वही है दस्त-ए-जुनूँ हमारा बदलता रहता है गो क़रीना
उसी से दामन को चाक करना उसी से दामन के चाक सीना

ख़ुदा बचाए तो बच सकेंगे सवाल अब नाख़ुदा का क्या है
किनारा दूर और थके हैं बाज़ू घिरा है तूफ़ान हैं सफ़ीना

जहाँ नहीं ख़ून की ज़रूरत वहाँ ग़लत नाज़-ए-सरफ़रोशी
जो किश्त-ए-मेहनत को सींचता हो लहू से बेहतर है वो पसीना

ये सक़्फ़-ए-दैर-ओ-हरम नहीं है ये आसमाँ इश्क़ का है इस पर
वही मुसाफ़िर क़दर उठाए बना सके जो दिलों को ज़ीना

रिदा-ए-ज़र्रीन-ए-मेहर-ए-ताबाँ ख़ला में है तार तार जब तक
इमाम की दिल की धड़कनों से कहानी बनती रहीं 'मुबीना'

उठी पिलाने की रस्म 'एहसाँ' तो क्यों न ख़ाली रहें प्याले
ख़ुदा की बरकत है मय-कदे में भरे हैं ख़म और भरा है मीना
Read Full
Ehsan Darbhangavi
ख़याल के फूल खिल रहे हैं बहार के गीत गा रहा हूँ
तिरे तसव्वुर की सरज़मीं पर नए गुलिस्ताँ खिला रहा हूँ

मैं सारे बर्बाद-कुन ख़यालों को दिल का मेहमाँ बना रहा हूँ
ख़िरद की महफ़िल उजड़ चुकी है जुनूँ की महफ़िल सजा रहा हूँ

उधर है आँखों में इक शरारत इधर है सीने में इक चुभन सी
नज़र से वो मुस्कुरा रहे हैं जिगर से मैं मुस्कुरा रहा हूँ

मिरी मुसीबत ये कह रही है ख़ुदा मुझे आज़मा रहा है
मिरी इबादत ये कह रही है ख़ुदा को मैं आज़मा रहा हूँ

ख़ुदी के माथे पे दाग़-ए-सज्दा हवस के चेहरे पे तीरगी है
मैं एक आईना ले के दोनों को दूर ही से दिखा रहा हूँ

लिया न दिल ने मिरे सहारा उभरती मौजों का शोरिशों का
मैं अपनी इस कश्ती-ए-शिकस्ता का आप ही ना-ख़ुदा रहा हूँ

मिले न मेरी ग़ज़ल में क्यूँकर शुऊ'र-ए-हस्ती सुरूर-ए-मस्ती
'जमील' के मय-कदे से 'एहसाँ' शराब-ए-इदराक पा रहा हूँ
Read Full
Ehsan Darbhangavi
ख़याल-ए-अंजाम-ए-आरज़ू था कि एक झोंका था तेज़ लू का
झुलस गया वो हसीन पौदा जो नाज़-पर्वर्दा था नुमू का

हज़ारों इस मय-कदे में आ कर चले गए तिश्नगी बुझा कर
मगर मिरा नाज़-ए-तिश्ना-कामी तवाफ़ करता रहा सुबू का

हिकायत-ए-चश्म-ए-नाज़ तुझ से हदीस-ए-राज़-ओ-नियाज़ तुझ से
ये सोज़ तुझ से ये साज़ तुझ से कि तू मुहर्रिक है आरज़ू का

नज़र के जादू सुला दिए हैं दिलों के शो'ले बुझा दिए हैं
हिजाब हम ने उठा दिए हैं तिलिस्म तोड़ा है रंग-ओ-बू का

हसीन होंटों की थरथराहट से दहन-ए-शाइ'र में थरथरी है
सुरूर छाया हुआ है दिल पर किसी की ख़ामोश गुफ़्तुगू का

हक़ीक़त आएगी सामने जब तो फिर फ़साना कहाँ रहेगा
तुम्हारा अफ़्सूँ रहे सलामत तिलिस्म तोड़ो न रंग-ओ-बू का

तबीअत इक अंजुमन बनी है हयात 'एहसाँ' दुल्हन बनी है
तमाम दुनिया चमन बनी है ये फ़ैज़ है किस की आरज़ू का
Read Full
Ehsan Darbhangavi
समझ सकते नहीं जो तेरे माथे की शिकन साक़ी
वो क्या जानें कि है बादा-कशी भी एक फ़न साक़ी

निकाल उन को सुबू-ओ-जाम में जो फ़र्क़ करते हैं
तमीज़-ए-बेश-ओ-कम है अक़्ल का दीवाना-पन साक़ी

तकल्लुफ़ बरतरफ़ हम शौक़ की मस्ती से डरते हैं
यही है राहबर साक़ी यही है राहज़न साक़ी

नज़र आती है सारी काएनात-ए-मय-कदा रौशन
ये किस के साग़र-ए-रंगीं से फूटी है किरन साक़ी

हक़ीक़त एक है सब की वो मा'बद हो कि मय-ख़ाना
बनाती आ रही हैं मंज़िलें मेरी थकन साक़ी

उठा ले जाम-ओ-मीना ख़त्म कर ये दौर-ए-मय-नोशी
कि याद आते हैं मुझ को तिश्ना-कामान-ए-वतन साक़ी

पस-ए-ख़ुम बैठ कर 'एहसान' को कुछ सोच लेने दे
छिड़ा है मय-कदे में क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन साक़ी
Read Full
Ehsan Darbhangavi