M. I. Sajid

M. I. Sajid

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M. I. Sajid shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in M. I. Sajid's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
अँधियारे आँख-आँख में पहना गई है शाम
इक चादर-ए-सियाह को फैला गई है शाम

राहों में खो गई हैं मोहब्बत की देवियाँ
जैसे हर एक मोड़ पे बहका गई है शाम

मग़रिब की सम्त जब कभी सूरज उतर गया
घर में दिया जलाने चली आ गई है शाम

सम्तों में बट गए हैं उजालों के हम-नवा
बे-सम्त देख कर मुझे सहरा गई है शाम

जिस सम्त देखता हूँ शुआ'ओं के ज़ख़्म हैं
किस की निगाह-ए-नाज़ से टकरा गई है शाम

अपने वजूद से मैं बिछड़ कर भटक गया
तन्हाइयों के ज़ख़्म से महका गई है शाम

शहरों के आसमाँ पे परिंदों का शोर है
मंज़र कोई हसीन सा दिखला गई है शाम

बरसों से चल रही थी ये मौसम के साथ साथ
मेरी गली में आन के सुस्ता गई है शाम

'साजिद' उठो यहाँ से कि मौसम उदास है
सूरज बिछड़ गया है चलो आ गई है शाम
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M. I. Sajid
गलियों में मिरी गाँव का डर बोल रहा है
लगता है सियासत का असर बोल रहा है

छाले हैं मिरे पाँव में पुर-ख़ार है रस्ता
आसाँ नहीं मंज़िल ये सफ़र बोल रहा है

तन्हाइयाँ रखती न कहीं का हमें लोगो
बच्चों के चहकने से ये घर बोल रहा है

साज़िश के सबब आग लगाई गई हर सू
बस्ती में उजालों का सफ़र बोल रहा है

ऐसे भी किया जाता है सच्चाई को ज़ाहिर
नेज़े पे लटकता हुआ सर बोल रहा है

कल तक जो रिया-कारों के चंगुल में फँसा था
अब मेरी हिमायत में नगर बोल रहा है

हो ताज-महल या कि अजंता की गुफाएँ
फ़नकार के हाथों का हुनर बोल रहा है

दुश्मन है वो रावन की तरह वार करेगा
हर सम्त फ़सादात का डर बोल रहा है

इक तुम ही नहीं बोलने वाले यहाँ 'साजिद'
कहने दो उसे वो भी अगर बोल रहा है
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M. I. Sajid
यहाँ ग़मों की है बोहतात और ख़ुशी कम है
चले भी आओ कि अपनी भी ज़िंदगी कम है

ज़रा सी देर ठहर जाओ जुगनुओं आ कर
हमारे घर में चराग़ों की रौशनी कम है

निकल चुके हो जो घर से कहीं ठहर जाओ
हमारे शहर में अम्न-ओ-अमाँ अभी कम है

तुम्हारे आने से फैलेगी ख़ुशबुएँ हर सू
चले भी आओ गुलाबों में दिल-कशी कम है

वो नफ़रतों का खिलाड़ी है उस के चेहरे पर
फ़रेब छाया है शिद्दत से सादगी कम है

तुम्हारे होंट भी ख़ाली हैं मुस्कुराहट से
हमारे सूखे लबों पे भी अब ख़ुशी कम है

ज़मीर बेच के करते हैं ऐश ये हर दम
हमारे दौर के लोगों में अब ख़ुदी कम है

सभी को अपने ही हालात ने बदल डाला
मिला तो करते हैं आपस में दोस्ती कम है

सिखा दिया है ज़माने ने ये हुनर 'साजिद'
हमारे लहजे में पहले से बे-रुख़ी कम है
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