Mahnaz Anjum

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Mahnaz Anjum shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Mahnaz Anjum's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Nazm
सर-बसर इक उलझती पहेली हूँ
और मेरी उलझन की
सुलझन भी दुश्वार है
तागा तागा मुझे कौन खोले
मुझे रंग-दर-रंग
और हर्फ़-दर-हर्फ़ परखे
कहीं ऐसी चश्म-ए-फुसूँ-कार है तो बताओ

ऐ मिरी बे-दिली के शिकस्ता किनारो
मिरे ख़्वाब-ए-हस्ती के
मौहूम रेशम को
किस धूप की
ज़र्द दीमक ने चाटा
कौन सी ख़्वाहिशों की
हरी टहनियों पर
बरहना हवाओं के पंजे पड़े
किस तलब की कथा
उन के रास्तों में कहीं राह-ए-गुम-कर्दा रहरव की सूरत
ख़जिल और कम-रख़्त रहने लगी
मैं उदासी की गहरी सहेली हूँ
तीखी पहेली हूँ
और मेरी उलझन की सुलझन भी दुश्वार है
मैं युगों से किसी दर्द की ख़ुश-हुनर उँगलियों की
तुनुक-ताब पोरों से
अपना पता पूछती हूँ
बहुत कार-ए-उक़्दा-कुशाई कठिन है
मगर मैं किसी रंज-ए-बरसर
ख़याल-ए-जुनूँ-पेशा की
आरज़ू कर रही हूँ
ये गुंजल सुलझ जाए
इस धुन में
दिल के नशेबों को
क्या क्या लहू कर रही हूँ
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Mahnaz Anjum
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कहाँ थे हम
समुंदर सी किसी ख़्वाहिश के साहिल पर
हँसती भीगती साअ'त की संगत में
हँसी कितनी सजल थी
आँख के हर कुंज में
तितली की सूरत उड़ती फिरती थी
रह-ए-शब में घना जंगल
या कोई अजनबी रस्ता
हमारे सामने आता
तो उस दीवार के सीने से कितने दुर निकल आए
लहू की ताल पर मंज़िल
धड़क उठती थी पहलू में
किसी एहसास के धुँदले
उफ़ुक़ से दिन निकल आता
और अपने साथ क्या क्या
क़ुर्मुज़ी किरनों में लेटे
प्यार के सन्देस ले आता
बहुत तकरीम के मौसम
तह-ए-जाँ से उभरते थे
दुआओं से भरे
सरसब्ज़ हाथों को यक़ीं था
झिलमिलाते ख़्वाब
ख़ुशबू-ख़ेज़ियों में फ़र्द होंगे
और तक़र्रुब के किसी
बेताब से पल को जगाएँगे
तो सरपट भागती
ये उम्र की हिरनी
किसी ज़ंजीर-ए-वा'दा में
कहीं रुक कर
हमें चाहत से देखेगी

कहाँ हैं हम
किसी वीरान साहिल पर
हमारी आरज़ू की कश्तियाँ
औंधी पड़ी हैं
और जैसे नींद के
बे-ताब हलकोरे की ज़द में हैं
अगर सूरज उन्हें उस नींद से
आज़ाद करने के लिए
किरनों को कोई इज़्न देता है
तो वो आँखों पे
अपने हाथ रख लेती हैं
गहरी नागवारी से
और अब तो
वस्ल की मिशअल भी ख़्वाबीदा है
सुलगन से तही है
और उस के दश्त में
हर सू बराबर रेशमी ख़्वाबों की
नीली राख उड़ती है
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बहुत लड़ते हो तुम
मैं भी तुनुक-ताबी में
ख़ासी फ़र्द हूँ
सो ख़ूब जमती है बहम अपनी
मैं मुश्किल रास्तों की गर्द
पलकों पर सँभाले आई हूँ
तुम तक
मिरे नज़दीक के हर मंतक़े में
तुम भी
अपने बालों की चाँदी पे इतराते
परागंदा मिज़ाजी में गुँधे
उखड़े हुए तारों की
पगडंडी के
दिल में घूमते हो

मोहब्बत की भड़क
लफ़्ज़ों में कम
आँखों की हलचल में
ज़ियादा ले के फिरती हूँ
मिरे नोकीले लहजे की
चुभन के उस तरफ़ दिल की
बहुत ही रेशमी हद तक
तुम्हारी आँख जाती है
तअ'ल्लुक़ में रवादारी का नम
जाने कहाँ से आता है
और आ के हम दोनों की
आवेज़िश की सब
मुँह-ज़ोरियाँ ज़ंजीर करता है
सुनो सब गुफ़्तुगू के सिलसिले
मेरी तुम्हारी ख़ामुशी की
भीग से सरसब्ज़ रहते हैं
मिरी नज़्मों का मरकज़
आज के पल की
सजल दुनिया में बस तुम हो
तुम्ही से बरसर-ए-पैकार हूँ
और बे-तहाशा मुल्तफ़ित भी
तुम तआरुज़ के गुदाज़ों में
मुझे देखो
मैं अपने दिल के तौसन को
बहुत सरपट भगाती
ख़ाक के तूफ़ाँ जगाती
जिस गुलिस्ताँ की तमन्ना की
डगर पर जा रही हूँ
उस की हद पर तुम
उस की हद पर तुम
कहीं इक पेड़ के पहलू में
दिल बन कर धड़कते हो
कहीं फ़ितरत के
पेच-ओ-ताब में ज़ंजीर हो
और धूप की यलग़ार में
मेरे लिए छाँव का
इक ना-मुख़्ततिम एहसास बनते हो
बहुत ही दूर से बस
तुम ही मुझ को साफ़ सुनते हो
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