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Top 10 of
Abuzar kamaal
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Abuzar kamaal
मोहब्बत नशा है, नशा है मोहब्बत
जिसे पहले होश आया वो बे-वफ़ा है
Abuzar kamaal
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मुझे आज घर जाना होगा
न पहचुँ मगर जाना होगा
गली-दर-गली, शहर-दर-शहर
पता पूछकर जाना होगा
सही रास्ता ढूँढ़ने को
यहाँ से किधर जाना होगा
ग़लत ले लिया आपने टर्न
इधर से उधर जाना होगा
अगर ज़िन्दगी चाहते हो?
सो तत्का़ल मर जाना होगा
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Abuzar kamaal
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खिलौना चाहिए और कुछ
लो दिल लो खेलती रहना
Abuzar kamaal
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मैं मिलूँगा गाम-दर-गाम यक़ीन मत किया कर
तू हो जाएगी री बदनाम यक़ीन मत किया कर
है वही बुरा जो ऑफिस में तेरे क़रीब बैठे
तू रखे जा काम से काम यक़ीन मत किया कर
ये सभी हुए हैं अपनी ही किसी कमी से बर्बाद
कहे दिल्लगी का अंजाम यक़ीन मत किया कर
मैं सुकून से हूँ अब तेरे बगै़र ख़ुश हुआ कर
नहीं पड़ रहा है आराम यक़ीन मत किया कर
है कोई जो याद करता है तुझी को सुब्ह और शाम
पी कमाल जाम-दर-जाम यक़ीन मत किया कर
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Abuzar kamaal
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वादियों में मय-नोश का आलम क्या होगा
पी के उस मद-होश का आलम क्या होगा
चख ली उसकी आँखों की मय जिस जिस ने
उनके अक़्ल-ओ-होश का आलम क्या होगा
चूड़ियाँ इतराती हों जिसकी क़लाई में
फिर उसके आग़ोश का आलम क्या होगा
मैने सिर्फ़ तसव्वुर ही किया ख़्यालाना
उसके हम-आग़ोश का आलम क्या होगा
कोई कांटा गर धोखे से चुभ जाए
मेरे उस गुल-पोश का आलम क्या होगा
तुम बस मेरी आखों में देखो और फिर
देखो मेरे जोश का आलम क्या होगा
डूबें हैं महबूब की यादों में यूँ कमाल
आज हमा-तन-गोश का आलम क्या होगा
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Abuzar kamaal
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ज़िन्दगी है आप और आपका ही है ख़याल
लज़्ज़त-ए-हयात कितने चटपटे है दुनिया में
Abuzar kamaal
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छोड़ो ये जीत-हार जाने दो
ऐ दिल-ए-बे-क़रार जाने दो
सौ बहाने है आने वाले पे
जिसको जाना है यार जाने दो
आज हम आपसे करेंगे बात
लोगों को एक बार जाने दो
सिर्फ तकिया ही मेरा जाने है
कितना है तुझसे प्यार, जाने दो
ये "अबूज़र" का दिल है इसमे भी
तीर इक़ आर-पार जाने दो`
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Abuzar kamaal
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जो घर, गली, शहर, देश खोया ज़रूर लेंगे
नए रखो नाम हम पुराना ज़रूर लेंगे
सुनो कि तुम जितना सह सको उतना ज़ुल्म करना
ये याद रखना, के हम भी बदला ज़रूर लेंगे
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Abuzar kamaal
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क्या टूट गया है दिल जो शोर शराबा है?
कुछ लोग मरे हैं गाड़ी ही तो पलट गइ है
Abuzar kamaal
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जो बाहर है
वो भीतर है
कुछ मत ढूँढो
दिल खंडर है
जाँ लेनी थी
क्या खंजर है..?
तुम अंदर हो
दिल बाहर है
तनहाईयाँ
घर-ब-घर है
नग़्मा-गर की
आखें तर है
लिखने मे हम
पेशे वर है
हम जैसे तो
चुटकी भर है
वो लडकी ही
चारागर है
बाहर हम हैं
घर शौहर है
तकिये दो हैं
इक़ चादर है
ये मातम भी
बस शब भर है
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Abuzar kamaal
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