मकाँ दिल को बनाने का, ये वादा रू-ब-रू कर के
मकीं घर छोड़ देते हैं, ये बातें कू-ब-कू कर के
लगी जो चोट भी तुमको, सहा मुझसे न जायेगा
ये बातें करने वाले छोड़ जाते, दिल लहू कर के
कभी नश्तर से जो उसने, दिये थे घाव इस दिल पर
वहाँ पैबन्द यादों का लगाया है, रफ़ू कर के
नहीं सूखी हैं बेलें आज भी, दिल में मोहब्बत की
उन्हें सींचा है अश्कों को लहू को, आब-जू कर के
तुम्हें सच्ची मुहब्बत का, सिला मैं और क्या देती
तुम्हें अगले जनम भी माँगती हूँ, आरज़ू कर के
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