वहीं जाएँगे हम आख़िर जहां लेकर शजर जाएँ
परिंदे छोड़ कर अपना ही घर आख़िर किधर जाएँ
ये दिल पे ज़ख़्म हैं उनसे किसी की याद ताज़ा है
करेंगे क्या बताओ हम अगर ये ज़ख़्म भर जाएँ?
कहीं ऐसा न हो इस क़ाफ़िले को लूट ले कोई,
मिरे प्यारो चलो, इस राह से जल्दी गुज़र जाएँ
परिंदों ने मुझे घर की तरफ़ जाना सिखाया है,
हुई अब शाम हज़रत जी, चलो! अब हम भी घर जाएँ
सदा दोगे हमें पर वो सदा हम तक न पहुँचेगी
कहीं ऐसा न हो हम इतनी तेज़ी से गुज़र जाएँ
जो उकता जाते सब से आप के ही पास आते थे
यहां भी लग चुकी पाबंदी बोलो, अब किधर जाएँ?
घड़ी की सिम्त ही हम देखते रहते हैं ऑफ़िस में
कि जल्दी ख़त्म हो ये वक़्त तो फिर हम भी घर जाएँ
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