चाँद तारों को क्यूँ खले तन्हा
हम भी इस आसमाँ तले तन्हा
दिन तो मसरूफ़ हो गया मेरा
हिज्र की शब न पर ढले तन्हा
आह निकली न, दर्द पी डाले
आँख में ग़म तेरे मले तन्हा
मंज़िलों से नहीं है बैर मुझे
जी दुखाते हैं फ़ासले तन्हा
बेख़ुदी इस क़दर बढ़ी अपनी
रो दिये ख़ुद के लग गले तन्हा
अक्स अपना 'मनीष' झूठा था
तोड़ आईना, हम भले तन्हा
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