Yasmeen Sahar

Yasmeen Sahar

@yasmeen-sahar

Yasmeen Sahar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Yasmeen Sahar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
धुआँ उड़ाती हुई धीमी धीमी बारिश है
हवा की अंधी सवारी पे अंधी बारिश है

हमारे गाँव के रस्तों की कच्ची मिट्टी पर
फिसल रहे हैं क़दम कितनी गंदी बारिश है

ज़रा सी खोल के खिड़की नज़र तो दौड़ाओ
दिखाई देती नहीं अच्छी-ख़ासी बारिश है

निकलते वक़्त उठाई नहीं गई छतरी
मिरी सहेली मुझे कह रही थी बारिश है

हमारे आने में ताख़ीर हो भी सकती है
ये देख कर यही लगता है जितनी बारिश है

मुज़ाकरात ज़मीं कर रही है धूप के साथ
कहीं पे देखी सुनी तुम ने इतनी बारिश है

तमाम सब्ज़ रुतें आ के कर रही हैं सलाम
हमारे शहर में मौसम की पहली बारिश है

ठिठुरते पानी में साँसों का नम मिलाते हुए
नदी में चाँद के हम-रह नहाती बारिश है

नमी उसी की मिली है महकते फूलों को
किरन किरन में घुली जो गुलाबी बारिश है

मैं फ़िल्म के किसी मंज़र पे बात कर रही हूँ
दिखाई जा रही जिस में बरसती बारिश है

तमाम ख़्वाब मिरे मिल गए हैं मिट्टी में
तमाम शब मिरी आँखों में जागी बारिश है

हवा की शह पे ही फिरती है दनदनाती हुई
हमारे चारों तरफ़ सर-फिरी सी बारिश है

मैं गाड़ी रोक के सेल्फ़ी बना रही हूँ 'सहर'
मगर अभी भी यहाँ हल्की हल्की बारिश है
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Yasmeen Sahar
कुछ इस पे सोचना था मशवरा भी करना था
मुआ'मले पे अभी तब्सिरा भी करना था

उसे भी कहना था अपना ख़याल रखने को
बिछड़ते वक़्त मुझे हौसला भी करना था

किसी के नाम के दिन भी बचा के रखने थे
और एक ज़िंदगी सा सिलसिला भी करना था

वो वाक़िआ'त भी दिल से मुझे भुलाने थे
कहीं कहीं पे रक़म सानेहा भी करना था

कहाँ पे आ के कड़ी सिलसिले की टूट गई
किसी से मैं ने कहीं राब्ता भी करना था

उसी मक़ाम पे अक्स अपने मैं ने दफ़नाए
जहाँ पे नस्ब मुझे आईना भी करना था

अभी तो बात का मैं कर रही थी अंदाज़ा
पहुँच के तह में मुझे फ़ैसला भी करना था

निकल के ज़िंदगी जैसी कड़ी हक़ीक़त से
मुझे तो तल्ख़ सा इक तजरबा भी करना था

सुनी हैं उस की अभी तक शिकायतें मैं ने
बयान अपना कोई मसअला भी करना था

निकालना थी मुझे ज़िंदगी भी मुश्किल से
मुकम्मल अब के कोई दायरा भी करना था
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Yasmeen Sahar
मेरे लफ़्ज़ों से चली बात मिरे लफ़्ज़ों की
तय हुई मुझ से मुलाक़ात मिरे लफ़्ज़ों की

मैं ने ये दिल के ख़ज़ाने से चुराए हुए हैं
कर नहीं सकता कोई बात मिरे लफ़्ज़ों की

शेर-दर-शेर बिठाए गए मसनद पर शेर
यूँ सजा दी गई बारात मिरे लफ़्ज़ों की

उस ने तस्वीर को तस्वीर किया और ले ली
सेल्फ़ी एक एक मिरे साथ मिरे लफ़्ज़ों की

नज़्म पर नज़्म सुनाने की हुई फ़रमाइश
यूँ पज़ीराई हुई रात मिरे लफ़्ज़ों की

मेरी तहरीर पे मज़मून लिखे जाने लगे
सर पे पड़ने लगी बरसात मिरे लफ़्ज़ों की

भीड़ ये सर पे नहीं अपने बिठा सकती मैं
खींच लें आप भले लात मिरे लफ़्ज़ों की

तोहफ़तन तीन किताबें उसे भेजीं मैं ने
हो क़ुबूल उस को ये सौग़ात मिरे लफ़्ज़ों की

इस सियाही से उभरती है सवेरे की किरन
ढलने लगती है जहाँ रात मिरे लफ़्ज़ों की

पैरहन उस ने मोहब्बत के मआ'नी को दिए
माला पहनाई लगे हाथ मिरे लफ़्ज़ों की

मैं ने एहसास की भट्टी से गुज़ारा हुआ है
तुम समझते नहीं हो बात मिरे लफ़्ज़ों की

ताज सर पर है मगर पाँव में बैठी हुई हूँ
मुझ से ऊँची है 'सहर' ज़ात मिरे लफ़्ज़ों के
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Yasmeen Sahar
मुझ पे टूटी जो सियह-रात बताने की नहीं
या'नी ये गर्दिश-ए-हालात बताने की नहीं

हाँ मिरा हाल भी बिल्कुल है तुम्हारे जैसा
मान लो बात कि हर बात बताने की नहीं

दिल की रग रग में घुली जाए हलावत जिस की
हाए वो दर्द की सौग़ात बताने की नहीं

धूप के शहर में मेरे भी कई दिन गुज़रे
सर पे बरसी थी जो बरसात बताने की नहीं

ज़िंदगी मस्त थी तब अपनी फ़ज़ाओं में मगन
खेली थी वक़्त ने जो घात बताने की नहीं

मैं कहानी को नए लफ़्ज़-ओ-मआ'नी दूँगी
ख़ुद पे गुज़री हुई दिन-रात बताने की नहीं

वक़्त ने की थी रक़म उस घड़ी इक उम्दा मिसाल
ज़िंदगी थी जो तिरे साथ बताने की नहीं

जाने अनजाने में क्या राज़ हुए हैं इफ़्शा
यूँ खुली मुझ पे मिरी ज़ात बताने की नहीं

ज़िक्र में लाऊँ तो छिन जाने का ख़दशा है 'सहर'
आई जो शय है मिरे हाथ बताने की नहीं
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Yasmeen Sahar
सुख़न में डूब कर अफ़्कार के अंदर से निकली हूँ
बड़ी मुश्किल से मैं किरदार के अंदर से निकली हूँ

ये कैसी तान में भर कर उतारा ख़ुद को नग़्मे में
ढली सुर में न मैं झंकार के अंदर से निकली हूँ

मिरी मर्ज़ी भी शामिल जब हुई है उस की मर्ज़ी में
मैं ज़िद को तोड़ कर इंकार के अंदर से निकली हूँ

कहीं बुनियाद में शामिल हुआ होगा लहू मेरा
मैं मिट्टी हो के जिस दीवार के अंदर से निकली हूँ

किया तख़्लीक़ उस ने मुझ को किस मेआ'र पर रख कर
ढली फ़न में न मैं फ़नकार के अंदर से निकली हूँ

मुझे छाँटा है जाने किस ने रख कर किस कसौटी पर
मैं क्या जानूँ मैं किस मेआ'र के अंदर से निकली हूँ

कोई भी क़ौस इस तस्वीर की खुलती नहीं मुझ पर
मैं किन हाथों से किस परकार के अंदर से निकली हूँ

'सहर' आसाँ न था अपने मुक़ाबिल आ के ख़ुद लड़ना
यही है जीत मेरी हार के अंदर से निकली हूँ
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Yasmeen Sahar
क़तार जुगनुओं की रौशनी लुटाती रही
मैं रंग गूँध के तितली के पर बनाती रही

रखा था सूई की टिक-टिक पे इक धड़कता दिल
यही तमाशा घड़ी हाथ की दिखाती रही

मैं चाँदनी की सहेली वो चाँद भाई मिरा
तमाम दिन यही आवाज़ कान खाती रही

घिसा-पिटा कहीं कुछ इंतिज़ार रोता रहा
हवा को देखो खड़ी सीटियाँ बजाती रही

वो थाप ढोल की कुछ और तेज़ होती गई
ख़मोशी बैठी मिरे पास गुनगुनाती रही

वो एक लड़का सा लिपटा हुआ चराग़ के साथ
दिया-सलाई मिरी उँगलियाँ जलाती रही

फ़लक की खूँटी से टाँगा हुआ था एक ख़याल
ज़मीं पे बैठी तिरी बात मुस्कुराती रही

मैं बर्फ़-बारी में निकली थी आग सुलगाने
वो नन्ही तितली मिरे पाँव जब दबाती रही

क़रीब लाने की तर्ग़ीब देने वाले देख
तिरी ख़ुशी में मिरी ज़िंदगी भी जाती रही
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Yasmeen Sahar