उन दिनों क्या ख़ूब था हाँ आदमी का ज़ाविया
सुन के ही खुल जाता था हर शाइरी का ज़ाविया
इक चमन जब सूख कर सहरा हुआ तो जाना ये
मौत समझाती है इक दिन ज़िंदगी का ज़ाविया
जब किसी दिन नज़्म में पाओगी अपना नाम तुम
दिल में छप जाएगा मेरी आशिक़ी का ज़ाविया
ताज़ा शादी है तो कुछ दिन प्यार होगा दरमियाँ
साल ज़ाहिर कर ही देगा मुफ़्लिसी का ज़ाविया
हुस्न की तश्ख़ीस करके काँच चमकाते हो जो
देखो टायर तो खुलेगा मेहनती का ज़ाविया
हैराँ हैं सब कैसे चालू हो गई बिगड़ी घड़ी
उसका आना समझा देगा इस घड़ी का ज़ाविया
आप लोगों के मुक़ाबिल अब ग़ज़ल सौरभ पढ़े
है ख़बर जुगनूँ को क्या है मुक्तसी का ज़ाविया
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