पेड़ दिल का बहुत ही तन्हा है
आज शायद ख़िज़ाँ का नग़मा है
घर को जन्नत बना के रक्खा है
हाथ माँ का भले ही मैला है
रौशनी शब में है, धुँआ है दिन
आज सब कुछ यहाँ पे उल्टा है
अपनी साँसें कफ़न में डालने से
तेरी चादर ने मुझको रोका है
मुझपे हँसती हैं कलियाँ जाने क्यों
लगता है उनका दिल भी टूटा है
मैंने तो साहिलों को माफ़ी दी
अपना ये दिल भी कितना दरिया है
इक हवेली की चाह है उनको
घर का सामान जिनका बिखरा है
ख़्वाब में ही डुबो भी सकती है
माँझी जिस नाव की ये दुनिया है
आँखें आँसू को यूँ तरस गईं हैं
मानो पलकों पे कोई सहरा है
घबरा के लौट आया हर मरहम
ज़ख़्म इस दिल का इतना गहरा है
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