मिरा हम-नशीं कोई और था मिरा हम-क़दम कोई और है
मुझे इश्क़ था किसी और से कि मिरा सनम कोई और है
कि फ़िराक़ भी था अज़ाब और विसाल भी है सितम मुझे
मुझे रंज तो कोई और था कि अभी अलम कोई और है
कि रफ़ाक़तें थी ज़रा ज़रा कि मुहब्बतें हैं अभी बहुत
वो नवाज़िशें कोई और थी प कि अब करम कोई और है
जिसे चाहा मिल न सका ख़याल में जो न था वो क़रीब है
मैं था आश्ना किसी और से कि मिरे बहम कोई और है
कि न इस तरफ़ को निगाह कर मुझे भूलने की दुआ तू कर
कि कभी था तू मिरे दिल में अब कि तिरी क़सम कोई और है
As you were reading Shayari by Azhan 'Aajiz'
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