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किसकी बारी है अब मियाँ मुझमें - Ashutosh Kumar "Baagi"

किसकी बारी है अब मियाँ मुझमें
कौन लेता है हिचकियाँ मुझमें

काश मंज़िल कोई मुझे कहता
सबको दिखती हैं सीढ़ियाँ मुझमें

रोज़ किरदार एक मरता है
टूटी रहती हैं चूड़ियाँ मुझमें

क़ब्र हूँ और चलती फिरती हूँ
दफ़्न कितनी हैं सिसकियाँ मुझमें

क़ुर्बतों का सिला मिला ऐसा
रह गईं हैं तो दूरियाँ मुझमें

मैं तो कमज़र्फ़ एक सहरा हूँ
ढूँढ़ती है वो सीपियाँ मुझमें

गर्मियों में मुझे वो छोड़ गया
जिसने काटी थीं सर्दियाँ मुझमें

इश्क़ के फूल जो खिले मुझमें
छोड़ दी हिज्र बकरियाँ मुझमें

तुग़लक़ी हुक्म उसके आते हैं
फिर उजड़ती हैं दिल्लियाँ मुझमें

- Ashutosh Kumar "Baagi"

Hijr Shayari

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