रक़ीबों से मुझे लगते हैं अब तो यार ये झुमके
कि हर दम चूमते हैं आपके रुख़्सार ये झुमके
उसे ख़ुश रहने की ख़ातिर, सिवा मेरे यही चहिए
मेरे हाथों बना ख़ाना, और हाँ, दो चार ये झुमके
तुम्हें क्या ही ज़रूरत है, किसी हथियार की साहिब
कमाँ अबरू, नज़र है तीर औ तलवार ये झुमके
बुरा ना तुम अगर मानों तो क्या मैं चूम लूँ तुमको
मेरा तो दिल नहीं पर कर रहे इसरार ये झुमके
अभी बाज़ार में थे तो, बहुत ही आम से थे ये
तेरे कानों में क्या आए, हुए शहकार ये झुमके
लटें उसकी उलझ जाती हैं, जब भी आ के झुमकों से
है लगता नागिनों से कर रहे तकरार ये झुमके
तेरे कानों में ऐसे झूमते हैं, लड़खड़ाते हैं
कि जैसे रिन्द की मानिंद हों सरशार ये झुमके
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