सबकी आँखों से बच के निकले हैं
तौर मुझसा है शेर मेरे हैं
इश्क़ हल्का तो उतरे बोतल में
राम सा हो तो संग तैरे हैं
जिसपे ये ज़िंदगी यक़ीं करती
हमने क्या वैसे ख़्वाब देखे हैं
सुन कहीं खा न ले ज़बाॅं अपनी
कहता है जो कि ज़ख़्म गहरे हैं
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