कोई भी तुम सा नहीं है देखता हूँ
तुमको मुझ पर भी यक़ीं है देखता हूँ
जो हैं उनमें क्या नहीं है देखता हूँ
हाँ ख़ुदा तू है यहीं है देखता हूँ
जो यहाँ था अब नहीं है ख़्वाब था क्या
वो यहाँ है या नहीं है देखता हूँ
चूमने से जो लबों पर फिर न लौटी
उस शिकन में ये जबीं है देखता हूँ
अब तलक जो माँ को आंटी कह रहा है
कैसा तेरा हम-नशीं है देखता हूँ
सारे मौसम साथ गुज़रे फिर भी काँटा
बद-नुमा है गुल हसीं है देखता हूँ
नाम जिसका मेरी तख़्ती पर गढ़ा था
ग़ैर इक घर का मकीं है देखता हूँ
Read Full