आँखों से खून याद में उसकी बहाइयो
दिन कल का अब मुझे मिरे रब मत दिखाइयो
ना-कामयाब था मैं चला छोड़ सो मुझे
अब कामयाब शख़्स को तुम मत गवाइयो
काला लिबास तेरा उतारे नज़र तिरी
तू रोज उस लिबास में ख़्वाबों में आइओ
भीगी न पलकें, आँखे मिरी इतने ज़ख़्मों से
कब तक ऐ ज़िन्दगी तू मुझे सताइओ
बस मेरी एक ही रजा, ख़्वाहिश रही है अब
सर उसकी गोद में रखे जीवन से जाइयो
हर बार तुझ को जाने दिया तेरी शर्तों पे
पर इस दफ़ा जो आइओ वापस न जाइयो
कितना हसीन कर दिया लिख के तुझे मैंने
अब इस हसीन पन पे गुमाँ तू उठाइयो
इक़रार इक दफ़ा भी न उसने किया है ग़म
अब "दीप" तू निगाहों में ये ग़म छुपाइयो
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