झील-सी आँखों का किस्सा अब पुराना हो गया

  - Dharmendra Asar

झील-सी आँखों का किस्सा अब पुराना हो गया
डूब कर दिन बीत जाता था ज़माना हो गया

इश्क़ की रहमत तो देखो क्या ग़ज़ब करता है ये
नाम उसका ले लिया मौसम सुहाना हो गया

हाल दिल का पूछती हो मुझसे अब मैं क्या कहूँ
तीर जो तुमने चलाया मैं निशाना हो गया

इन दरख़्तों से उड़े बाग़ी परिंदों का मक़ाम
आसमाँ होना था लेकिन क़ैद-ख़ाना हो गया

एक ही हसरत थी दिल में और वो पूरी हुई
नींद को मेरी मयस्सर तेरा शाना हो गया

कितना आसाँ है यहाँ पर कुछ भी पा लेना मुझे
मानना है पा लिया और जो भी माना हो गया

  - Dharmendra Asar

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