मिरा लफ़्ज़ हर दर सुख़न खोजता है
है कैसी तिजारत घुटन खोजता है
जिसे सोचते हैं सुकूँ देगा दिल को
वही शेर देखो चुभन खोजता है
कहा है जिसे दूर रहने को मैंने
मिरा जिस्म उसका छुअन खोजता है
मिजाज़-ए-सुकूँ दिल को भाता नहीं अब
हरारत भरा यह बदन खोजता है
कमाया हो चाहे बहुत नाम मैंने
सुकूँ चैन अपना वतन खोजता है
नहीं होता आसान इक शेर तक भी
यहाँ सारा मिसरा कफ़न खोजता है
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