दिल्लगी आशिकी निभाते हुए
उम्र गुज़री फरेब खाते हुए
ज़िन्दगी अच्छे दिन दिखाते हुए
थक गई है वो आज़माते हुए
जिनकी मैं जुस्तजू लिए बैठा
साफ दिखतें है दूर जाते हुए
अपने बच्चो को मैं सिखाउंगा
जात भी देखो दिल लगाते हुए
दस बरस लग गए मुझे असग़र
दिल की बातें जुबां पे लाते हुए
रोजी रोटी की भागा दौड़ी में
शायरी खो ही दी कमाते हुए
आप तो एक हसीन लड़कीं हैं
अच्छी लगतीं हैं मुस्कुराते हुए
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