यही क़िस्मत है मेरी जान कि तन्हा देखूँ

  - Firdous khan

यही क़िस्मत है मेरी जान कि तन्हा देखूँ
उम्र भर मैं यहीं बैठी तेरा रस्ता देखूँ

देखने वालों ने किस तौर से देखा तुझको
इन झुलसती हुई आँखों से मैं क्या क्या देखूँ

इक तेरी ट्रेन के जाने पे ये बचता है कि बस
मौत आती हुई देखूँ तुझे जाता देखूँ

चाहती हूँ कि मैं दफ़्तर की मशक़्क़त से जब
घर को लौटूॅं तो कोई राह मेरी तकता देखूँ

सोचती हूँ बड़े हो कर भी उठाऍंगे बोझ
नन्हें काॅंधों पे जो भारी कभी बस्ता देखूँ

  - Firdous khan

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