ज़ीस्त मजहब दोस्ती और प्यार के क़ाबिल नहीं
यानि मुर्शद हम किसी क़िरदार के क़ाबिल नहीं
हम सरासर सच उगलते हैं किसी भी बात पर
हम सियासत के किसी दरबार के क़ाबिल नहीं
एक जानिब बीवी बच्चे एक जानिब वालिदैन
दिल मेरा आँगन है पर दीवार के क़ाबिल नहीं
ज़िंदगी में कुल मेरे दो चार ही तो लोग हैं
सच कहूँ तो मैं इन्हीं दो चार के क़ाबिल नहीं
खोल खिड़की देख बाहर हम खड़े हैं आस में
ये बता क्या हम तेरे दीदार के क़ाबिल नहीं
अब जो हमने प्यार का इज़हार कर डाला है तो
अब हमारी ज़िन्दगी इतवार के क़ाबिल नहीं
कोई भूखा मर गया है गर सड़क पर छोड़िये
इस समय तो ये ख़बर अख़बार के क़ाबिल नहीं
आप मासूमों के गर्दन काटते हैं काटिये
मेरी गर्दन आपके तलवार के क़ाबिल नहीं
देश की सरकार नाक़ाबिल है ऐसा मत कहो
ये भी हो सकता है हम सरकार के क़ाबिल नहीं
हम हैं नकली मीर हमसे शेर सुनिये दोस्तों
ये ज़माना मीर के अश'आर के क़ाबिल नहीं
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