बातें भी करती हैं तो पेडों से या गगन से
रखती नहीं है मीरा ख़्वाहिश कोई किशन से
हम प्यार करने वाले लश्कर से लड़ लें लेकिन
डरते हैं यार तेरे माथे की इक शिकन से
सागर में जैसे कोई तूफान सा उठा हो
महसूस हो रहा है हमको तेरे छुवन से
ग़ालिब के शेर तूने बचपन से ही पढ़े हैं
आती है वो ही खुश्बू शायर तेरे कहन से
रोटी के वास्ते ही सब कुछ करे है दुनिया
रोटी कमा रहा है यारों कोई कफ़न से
बारिश का हाल ऐसा खेती के मौसमों में
जैसे हो कोई दुल्हन रूठी हुई सजन से
वो पास में हो बैठी लेकिन हों घर में बच्चे
कुछ भी हसीं नहीं है दुनिया मे इस चुभन से
बस नाम की वज़ह से हम शेर कह रहे है
वरना हमें क्या मतलब है मीर या सुख़न से
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