जो मुद्दे उलझे सरकारों से - Jagveer Singh

जो मुद्दे उलझे सरकारों से
वो तय होने फिर तलवारों से

कुछ लोगों से यूँ रिश्ता मेरा
जैसे छत का है दीवारों से

कल मरने वाला तो आज मरे
मुर्दा बेहतर है बीमारों से

ये ख़ूबी है जनता राज में इक
जनता लड़ जाती दरबारों से

दारू बदले चुनने वालो के
हालात हो गए लाचारों से

क़ुव्वत क्या है मेरे दुश्मन की
मुझको ख़तरा है गद्दारों से

- Jagveer Singh
3 Likes

More by Jagveer Singh

As you were reading Shayari by Jagveer Singh

Similar Writers

our suggestion based on Jagveer Singh

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari