जो मुद्दे उलझे सरकारों से
वो तय होने फिर तलवारों से
कुछ लोगों से यूँ रिश्ता मेरा
जैसे छत का है दीवारों से
कल मरने वाला तो आज मरे
मुर्दा बेहतर है बीमारों से
ये ख़ूबी है जनता राज में इक
जनता लड़ जाती दरबारों से
दारू बदले चुनने वालो के
हालात हो गए लाचारों से
क़ुव्वत क्या है मेरे दुश्मन की
मुझको ख़तरा है गद्दारों से
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