हम जो अपने घर में खुलकर रो पड़े - ''Kumar Aryan''

हम जो अपने घर में खुलकर रो पड़े
सुनते हीं सारे सितमगर रो पड़े

एक मुद्दत हो चुकी थी बिन मिले
मिलते ही भाई सहोदर रो पड़े

देखकर इक वीर की बेवा को तो
हाथ की चूड़ी महावर रो पड़े

चाक दामन इस तरह मेरा हुआ
सीते सीते ही रफ़ूगर रो पड़े

घर मेरे आये हुए मेहमान सब
देखकर के टूटी छप्पर रो पड़े

जिसको पाने के लिए रोते थे हम
जब उसे पाया तो पाकर रो पड़े

आदमी को आदमी कैसे कहें
देखकर जिसको पयम्बर रो पड़े

क्या शिकायत हो ज़माने भर की जब
सर लगे अपनों के पत्थर रो पड़े

नज़्म ऐसी थी मियाँ के क्या कहें
बज़्म में सारे सुख़न-वर रो पड़े

- ''Kumar Aryan''
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