कोई दीवाना अगर कूचा-ए-जाँ तक पहुँचे
ऐन मुमकिन है के इज़हार ज़ुबाँ तक पहुँचे
कहीं से होके कहीं और निकल जायेगा
मेरा पैग़ाम मुहब्बत है जहाँ तक पहुँचे
सजदे में सिर को झुका कर मैं यही सोचता हूँ
रूह के साथ इबादत भी वहाँ तक पहुँचे
इतनी आसानी से पाई नहीं मंजिल हमने
उसका पीछा किया तब जाके यहाँ तक पहुँचे
बज्म में मैंने ही आवाज़ उठाई है मगर
देखना ये है के आवाज़ कहाँ तक पहुँचे
हमने ग़ुरबत में ग़ुज़ारा है बहुत वक़्त+अपना
धीरे-धीरे ही फ़क़ीरी से शहाँ तक पहुँचे
दो रुपए देना न देना किसी को अपनी सलाह
चाहता हूँ मैं जो समझाना वहाँ तक पहुँचे
मैं तो दहलीज पे आ पहुँचा हूँ तेरी लेकीन
अब तलक तुम क्यूँ नहीं घर से यहाँ तक पहुँचे
Read Full