उसकी ख़ातिर दुनिया पूरी भी ख़फ़ा की
जितनी कर सकता था मैं मैं ने वफ़ा की
उसके दिल में घर किया ही था कि मैं ने
सबसे पहले वाँ से मायूसी दफ़ा की
फिर किसी ने हम पे बरखा कर इनायत
सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी की तफ़ा की
यह न था बस मुद्दआ मेरा वफ़ा थी
नेक-फ़हमी उसके हक़ में बा-वफ़ा की
कब तलक दरकार यूँ हम को इनायत
'श्रेय' और फिर यह रहे उस पुर-जफ़ा की
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