किसी भी ग़म में उन्हें मुब्तला ख़ुदा न करे

  - Muntazir shrey

किसी भी ग़म में उन्हें मुब्तला ख़ुदा न करे
वो ऐसे कर्ब से हो आश्ना ख़ुदा न करे

न रोएँ वो कभी ग़म-ख़्वारगी को मेरे बाद
किसी सबब भी उन्हें ग़म-ज़दा ख़ुदा न करे

सलूक मेहर-ओ-मोहब्बत का पाएँ वो सब से
वो बा-वफ़ा कभी पाएँ जफ़ा ख़ुदा न करे

तवक़्क़ो जिस से ज़रा भी हो दिल दुखाने की
शय ऐसी उस से करे राब्ता ख़ुदा न करे

नशात और वो बाहम रहे सदा नज़दीक
कि बीच उनके ज़रा फ़ासिला ख़ुदा न करे

रहे सदा ही तबस्सुम लबों पर उसके 'श्रेय'
लगे किसी की उसे बद-दुआ ख़ुदा न करे

  - Muntazir shrey

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