मुकम्मल कुछ नहीं है इश्क़ में एहसास होता है - Niteesh Upadhyay

मुकम्मल कुछ नहीं है इश्क़ में एहसास होता है
लिहाजा सब्र का हर इक असासा पास होता है

हिना नक़्क़ाश है ऐसी कि कर डाला बदन मर-मर
कभी मुमताज़ गर कह दूँ कहाँ विश्वास होता है

परेशाँ-हाल ही रस्मन क़बीले बाँध रखते हैं
रिवायत की परस्तिश में भी कोई दास होता है

कहीं दस्तार उतरा है कहीं सर भी क़लम होगा
ज़लालत से त‌अल्लुक़ है ये बारह-मास होता है

मुक़द्दर का तमाशा है अदब से पेश आने पर
किसी को सल्तनत बख़्शी किसे वनवास होता है

मुकर्रर दिन सभी का है सभी की रुख़्सती है तय
फ़क़ीरों को मुक़द्दर में मिला सब रास होता है

- Niteesh Upadhyay
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