हम अपने शोर से बैसाखियाँ बनाते हैं
वो हैं कि ख़ामुशी को सीढ़ियाँ बनाते हैं
वो मान बैठते हैं इक जज़ीरे को दुनिया
जो साहिलों से परे कश्तियाँ बनाते हैं
ये सर्दी उनके लिए करनी है दुआ मुझको
जो लोग गर्मियों में कुल्फियाँ बनाते हैं
हमारी सिसकियाँ ही फ़ासला बनाती हैं
हमारे फ़ासले ही सिसकियाँ बनाते हैं
चुनिंदा दोस्त हैं और वो भी धोके से सच्चे
गरेबाँ के लिए ये खिड़कियाँ बनाते हैं
बस एक दिल की ज़रूरत है हादसे के लिए
हजर हों दो तो ही चिंगारियाँ बनाते हैं
वो सबसे पहला लकड़हारा कौन होगा गर
शजर को काट के कुल्हाड़ियाँ बनाते हैं
बड़ी अजीब रिवायत है शहर की तेरे
जो साँप पालते हैं , लाठियाँ बनाते हैं
कहाँ पे रह गई बरसात से ज़मीं महरूम
ये अब्र इसलिए तो बिजलियाँ बनाते हैं
किसी बहाने से नज़दीकियाँ करी जाएँ
हम एक काम करें , दूरियाँ बनाते हैं
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