जिस डगर जाना न था उस ओर जाने लग गए
लौटकर आने में उनको भी ज़माने लग गए
झूठ जब पकड़ा गया उनका सरे बाज़ार तो
आँख में आँसू लिए बातें बनाने लग गए
बारहा जिनको हिदायत दी गयी परहेज़ की
वो हकीमों की दवा को आज़माने लग गए
दो घड़ी बैठा क़रीं मैं मशवरा देने मगर
इश्क़ के अपने तज़रबे वो सुनाने लग गए
हाल अपना भी बयाँ करते उसे हम भी मगर
हम तबस्सुम देख उसकी मुस्कुराने लग गए
जिन दीयों की रोशनी से घर में बच्चे पढ़ रहे
कुछ शराबी बाप उनको भी बुझाने लग गए
सुब्ह को जो फूल वरमाला की ख़ातिर आए थे
बदनसीबी देखिए शव पर सजाने लग गए
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