बात है उसकी तो क्या ग़लत क्या सही
इश्क़ में तुम कहो क्या ग़लत क्या सही
तुम सही को सही और ग़लत को ग़लत
जो नहीं कह सको क्या ग़लत क्या सही
मर्द जो बन रहा बीवी को पीट कर
कह रहा घर में वो क्या ग़लत क्या सही
देख मकड़ी का जाला ये मैंने कहा
वास्ते रोज़ी को क्या ग़लत क्या सही
भाई का कर के ख़ूँ भाई है कह रहा
ये सियासत है तो क्या ग़लत क्या सही
वेद गीता पुराणों में क्या है लिखा
पंडितों ज्ञान दो क्या ग़लत क्या सही
पहले तो मुझसे ही मशवरा ले लो तुम
फिर मुझे तुम कहो क्या ग़लत क्या सही
रात को क़त्ल करके वो कानून का
सुब्ह कहता सुनो क्या ग़लत क्या सही
तुम तलाश-ए-मआनी मे क्यों महव हो
अर्ज़ है शेर-गो क्या ग़लत क्या सही
वक़्त बदले तो सब ठीक करता 'सचित'
बदला अब वक़्त तो क्या ग़लत क्या सही
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