तुम्हीं को याद ये करता है बार बार सनम
क़रार दिल को नहीं दिल है बे-क़रार सनम
मेरा यक़ीन करो जिस क़दर तुम्हारा है
मेरा नहीं है मेरे दिल पे इख़्तियार सनम
किया न तुम ने मोहब्बत पे ऐतमाद मेरी
दिलाता रह गया मैं तुम को ऐतबार सनम
मैं क्या करूँ के इसे आरज़ू तुम्हारी है
मैं क्या करूँ के नहीं दिल पे इख़्तियार सनम
जो हम ने साथ गुज़ारा था वो ज़माना फिर
ए काश लौट के आ जाए एक बार सनम
तुम्हारा लौटना मुम्किन नहीं है फिर भी मैं
करूँगा लौट के आने का इन्तिज़ार सनम
As you were reading Shayari by Saif Dehlvi
our suggestion based on Saif Dehlvi
As you were reading undefined Shayari