आरज़ू ये है मिरी जान की जाते जाते
इक महल हम भी तेरे नाम बनाते जाते
हम को तस्वीर बनानी नहीं आती वरना
उम्र भर हम तिरी तस्वीर बनाते जाते
किस लिए छोड़ गए तोड़ गए क्यूँ रिश्ता
जाते जाते हमें इतना तो बताते जाते
ज़िन्दगी भर के लिए छोड़ के जाना था अगर
कम से कम नक़्श-ए-कफ़-ए-पा तो मिटाते जाते
ठोकरें खा के सॅंभलना तुम्हें कैसे आता
हम अगर राह के पत्थर को हटाते जाते
वो भी मुड़ मुड़ के कहाँ तक हमें देखे जाता
हम भी कब तक उसे आवाज़ लगाते जाते
उन से कहना कि बहुत याद किया है उन को
उन के दीवाने ने इस दहर से जाते जाते
मुफ़लिसी ले गई सुख चैन हमारा वरना
ज़िंदगी हम भी तेरे नाज़ उठाते जाते
वो चराग़ों का मुक़द्दर था कि जलते बुझते
आपका काम जलाना था जलाते जाते
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