जो उतर आई है दिल में तेरी ही तस्वीर है
रंग तेरा ही है इस में तेरी ही तफ़्सीर है
मेहरबाँ है ये किसी पर और किसी से है ख़फ़ा
शोख़ है ये मनचली है कहने को तक़दीर है
बारहा मैं लौट आता हूँ भटक कर अपने घर
लिपटी मेरे पाँव से घर की कोई ज़ंजीर है
क्या इरादा कर लिया है मारने और मरने का
साफ़ दिखता है तुम्हारे हाथ में शमशीर है
इस जहाँ को जंग का मैदाँ बना बैठे हो क्यों
क्यों गुमाँ ये है कि दुनिया आप की जागीर है
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