मैं गुम रहूँगा ज़माने भर से हयात फ़ाक़ों में काट दूँगा
हाँ झूठी शोहरत हराम दौलत की दिल में हसरत नहीं रखूँगा
तू शाहज़ादी है माह-रू है तू महलक़ा है तू महजबीं है
इसी तरह से मैं तेरी मिदहत सदा से करता हूँ और करूँगा
ये मेरी गज़लें ये मेरी नज़्में ये शेर मेरे तिरे लिए हैं
सभी सुनाऊँगा तुझको उस दिन मैं यार जिस दिन तुझे मिलूँगा
अगर तू मेरी तरह से ठोकर लगा के आ जाए सल्तनत को
तो तुझको सीने लगा के अपने मैं तेरे क़दमों को चूम लूँगा
अगर चलेगी हवा-ए-ज़ुल्मत कहीं जहाँ में ख़िलाफ़ उसके
मुख़ालिफ़त में मैं उसकी हक़ का चराग़ बनकर चमक उठूँगा
मुहम्मदी हूँ मैं हैदरी हूँ मैं शब्बरी हूँ मैं हूँ हुसैनी
मैं हक़ लिखूँगा मैं हक़ पढूँगा मैं हक़ कहूँगा मैं हक़ सुनूँगा
समर में दूँगा वफ़ा मुहब्बत का सबको दूँगा अमन का साया
शजर अगर मैं शजर बनूँगा तो सुन लो ऐसा शजर बनूँगा
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