हर पल बसी हुई तू मेरी जान मन में है
तस्वीर तेरी आज भी दिल के सहन में है
उसको सज़ा-ए-मौत सुना हाकिम-ए-जहाँ
वो शख़्स भी शरीक दिल-ए-राहज़न में है
दिल रो रहा है हालत-ए-गुलशन को देख के
कुछ इतने ज़ख़्म यार गुलों के बदन में है
जो हँस के जाँ निसार करे राह-ए-इश्क़ में
ये हौसला तो क़ैस में या कोहकन में है
भँवरे तवाफ़ करते हैं जिस गुल का रात दिन
मुर्शिद वो गुल हमारी गली के चमन में है
अफ़सुर्दा हाल दिल का है फ़ुर्क़त के बाद से
जकड़ा हुआ ये आज ग़मों की रसन में है
ज़िंदान-ए-शाम जैसा है दिल में मेरे समाँ
दिल हर घड़ी ये मेरा क़सम से घुटन में है
जिसको सदाएँ देती थी तुम कह के अपनी जाँ
लिपटा हुआ वो देख लो आकर कफ़न में है
करता हूँ दीद जब भी मैं महताब का सनम
लगता है जैसे बैठा हुआ तू गगन में है
जब से गई है छोड़ के बुलबुल ख़ुदा क़सम
तब से शजर ये मुब्तिला रंज-ओ-मेहन में है
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