मता-ए-दिल हो मता-ए-जाँ हो गुलों की फ़स्ल-ए-बहार तुम हो
निगाह-ए-उल्फ़त निगाह-ए-बिस्मिल निगाह-ए-हसरत में यार तुम हो
था दौर-ए-माज़ी वफ़ा का दुश्मन है दौर-ए-हाज़िर वफ़ा का दुश्मन
थे दौर-ए-माज़ी में ख़्वार मजनूँ लो दौर-ए-हाज़िर में ख़्वार तुम हो
तुम्हारा क़ब्ज़ा है सल्तनत पर हाँ तुम ही हाकिम हो सल्तनत के
तुम्हारा हक़ है जो मन में आए करो मोहब्बत-गुज़ार तुम हो
हो रंज-ओ-ग़म के बहुत सताए ये कहके उसने गले लगाया
मुसाफ़िरान-ए-अदम ग़रीब-उल-वतन ग़रीबुद्दयार तुम हो
दिल-ए-बिरिश्ता दिल-ए-फ़सुर्दा दिल-ए-गिरफ़्ता तड़प के बोला
क़सम ख़ुदा की मिरे हाँ हाल-ए-ज़बूँ के बस ज़िम्मेदार तुम हो
मज़ार-ए-मजनूँ मज़ार-ए-राँझा मज़ार-ए-फ़रहाद चल के चूमों
सुनो जो दौर-ए-जदीद दौर-ए-हयात में दिल-फ़िगार तुम हो
ये मीर-ओ-ग़ालिब अनीस-ओ-मोमिन ये जौन-ओ-हैदर दबीर-उल-इंशा
हैं सब के सब रेख़्ता की ज़ीनत कहो के इन पर निसार तुम हो
था जैसे इबलीस आसमाँ पर उसी तरह से शजर ज़मीं पर
बड़े इबादत-गुज़ार बंदे बड़े तहज्जुद-गुज़ार तुम हो
तुम्हारे सदक़े में चाँद तारे चमन ज़मीन-ओ-ज़माँ बना है
शजर हो शाम-ओ-सहर तुम इसकी क़सम से लैल-ओ-नहार तुम हो
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