दिल में ज़रा ख़ुशी नहीं क्यों तेरी आशिक़ी में भी
रोता रहा ये ग़म बहुत छिप कर हँसी-हँसी में भी
हाल-ए-शिकस्ता जान कर कुछ जब्र में कहा नहीं
लुत्फ़-ए-सुख़न वही मिला फिर हमको दोस्ती में भी
शब भर उदास था ये दिल, लेकिन मलाल है नहीं
क्यों मौत भी मिली नहीं, है मौत तिश्नगी में भी
हैरानगी से आप की हैरान ख़ुद भी हो गया
मारा गया हूँ चीख़ता बच्चे की गुदगुदी में भी
फिर वो कभी जले नहीं जितने चराग़ थे बुझे
इस रज़्म रौशनी में भी, उस रज़्म तीरगी में भी
बातें दबी-दबी थी जो, अब हो रही है हर कहीं
क्या हाय ! ज़िंदगी मिली, सन'अत की मुफ़्लिसी में भी
अब तक भरा नहीं है बद, दिल तुमसे दुश्मनी लेकर
कार-ए-जहाँ में हारा मैं फिर इस सुख़न-वरी में भी
As you were reading Shayari by Shivansh Singhaniya
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