ठीक है धूप तो खिली होगी
उन पहाड़ों पे बर्फ़ भी होगी
अपनी दुनिया बनाऊँगा जब मैं
वाँ नबी की जगह वही होगी
जिसके चक्कर में कट मरे हैं सब
हिज्र किस का वो काटती होगी?
होठ रखिए हमारे होठों पर
आपको प्यास तो लगी होगी?
टकरा के टूट ही गए पत्थर
मैंने सोचा था रोशनी होगी
मैं कभी इस जगह का पौधा था
मुझको मिट्टी तो जानती होगी
वो जमाने से हारती तो नहीं
क्या पता हार भी गई होगी
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