हम तो अपना सब कुछ खो कर उसके बिस्तर से आये थे
मत पूछो कैसे उन नाज़ुक लम्हों से बच के आये थे
अब तक आती है कपड़ों से उस जिस्म-ए-अतहर की ख़ुश्बू
हम जिसकी बाँहों में वो दिलकश रात बिता के आये थे
कैसे कह दें हम कैसी थी उसके होंटो की वो नेमत
हम जिसके होंटो से मय की मदहोशी ले के आये थे
हम ने चाहा था वो लैला मेरी बदनाम न हो लेकिन
हम तो धोके में उसका गेसू कॉलर पे ले आये थे
मेरी यादों में ही तो उसके हाथों से रिसता था खूँ
हम ही तो उसके खूँ से ताज़ा गजलें ले के आये थे
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