जहालत के किसी युग में नहीं हारे हैं अध्यापक
चमकते हैं जो हर मौसम में वो तारे हैं अध्यापक
रवानी के बिना पानी कभी दरिया नहीं बनता
अगर हम आब हैं तो आब के धारे हैं अध्यापक
वो चाहे मैथ के हों आर्ट के हों या हों इंग्लिश के
हमें अपने तमामी जान से प्यारे हैं अध्यापक
शब-ए-दैजूर में भी जिन की रौनक़ कम नहीं होती
ज़माने के उजालों में वो उजियारे हैं अध्यापक
अकेले मंज़िल-ए-मक़सूद पे हम कैसे पहुँचेंगे
हमारी मंज़िल-ए-मक़सद के गलियारे हैं अध्यापक
यूँ ही पहुँचा नहीं है इल्म का पैग़ाम घर-घर में
पयाम-ए-इल्म के दुनिया में हरकारे हैं अध्यापक
हर इक क़स्र-ए-जहालत भरभरा कर ढह गया यावर
अँधेरों के नगर में जब भी ललकारे हैं अध्यापक
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